प्रतिभाशाली भारतीयों का आज सपना है कि वे भारत या दुनिया के किसी बेहतर इंस्टीट्यूट से उच्च शिक्षा हासिल करें। लेकिन उच्च शिक्ष का बढ़ता खर्च लोगों के बूते से बाहर हो रहा है। ऐसे में एजुकेशन लोन उन योग्य स्टूडेंट्स के लिए ऐसा विकल्प है जो उन्हें पसंद के इंस्टीट्यूट से उच्च शिक्षा हासिल करने में आर्थिक मदद मुहैया करा सकता है।
बैंक चार लाख रुपए तक के लोन पर कोई मार्जिन मनी लेते हैं। लेकिन इससे अधिक राशि के लोन के लिए भारत में पढ़ाई करने पर बैंक 5% और विदेश में 15% मार्जिन मनी लेते हैं। मार्जिन मनो वह रकम होती है, जो आवेदक को डाउन पेमेंट के तौर पर देनी पड़ती है। जहाँ तक एचडीएफसी क्रेडिला की बात है यह कोइ एजुकेशन लोन पर किसी तरह की मार्जिन मनी नहीं लेती है। यह ट्युशन फीस के अलावा रहने के खर्च, यात्रा आदि के पूरे खर्च के लिए एजुकेशन लोन दैती है। इसके अलावा, धारा 80-ईं के तहत एजुकेशन लोन पर आकर्षक टैक्स बेनिफिट उपलब्ध हैं। इसमें ब्याज राशि पर टैक्स छूट की कोई ऊपरी सीमा नहीं है। आवेदक या सह-कर्जधारक इस आयकर छूट का लाभ उठा सकते हैं।
आज के अनिश्चित वैश्विक आर्थिक माहौल में और शिक्षा के बढ़ते खर्च को देखते हुए 10-12 साल की लंबी अवधि के लिए एजुकेशन लोन लेना समझदारी है। पढ़ाई की अवधि के दौ़रान माता-पिता भी एजुकेशन लोन के ब्याज का पूरा या इसके एक हिस्से का भुगतान करना शुरू कर सकते हैं। स्ट्डेट्स को एजुकेशन लोन की को पूरी सवधानी के साथ खर्च करना चाहिए और उतना ही कर्ज लें जितना आवश्यक लो। वित्तीय रूप से अनुशासित स्टुडेंट्स और माता-पिता खर्च में बचत के लिए नए-नए तरीके अपना सकते हैं।
दुनिया में जारी उथल-पुथल और विभिन्न देशों की ईमिग्रेशन नीति की अनिश्चितता से एक अशाँत रुझान उभरकर सामने आ रहा है। ऐसे में भारत के किसी कर्जदाता से एजुकेशन लोन लेना बेहतर रहेगा क्योंकि वह रुपये मे कर्ज देगा और ईएमआई वी राशि भी रुपए मेँ ही तय होगी। भारतीय मुद्रा के प्रभुत्व वाला एजुकेशन लोन लेने का फायदा यह है कि स्टूडेंट स्वदेश लौटकर भारत में काम करना शुरू करता है तो उसके लोन पर करेंसी में उतार-चढ़ाव का कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि उसकी आमदनी और ईएमआई दोनों भारतीय रुपए में होंगी। वहीँ, ऐसे मामले जिनमें एजुकेशन लोन विदेशी कर्जदाता से लिया गया, ईएमआई भी विदेशी मुद्रा में निर्धारित थी, रुपए के कमजोर होने पर इनकी इश्मआई अचानक इतनी बढ़ गईं कि इसे चुकाना मुश्किल हो गया और उन्हे अपने कर्ज को भारतीय मुद्रा में कन्व्हर्ट कराना पड़ा।
हाल के वर्षों में रुपए में भारी उतार-चढाव देखने को मिला है। 30 सितंबर 2014 को रुपए की कीमत प्रति डॉलर 61.75 थी। पिछले साल 9 अक्टूबर को वह 74.39 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ था। जबकी बीते शुक्रवार ( 20 सितंबर ) को यह एक डॉलर के सामने 70.94 पर बंद हुआ है। रिकॉर्ड निचले स्तर की बात करें तो पिछले पांच साल में रुपया 20.47% और शुक्रवार के बंद स्तर की बात करें तो 14.88% कमजोर हुआ है। डॉलर के मजबूत होने और रुपए के कमजोर से उच्च शिक्षा का खर्च अमेरिकी मुद्रा में भले महज 4.81% बढ़ें, लेफिन भारतीय मुद्रा के कमजोर होने से शिक्षा का खर्च इससे अधिक बढ़ता है। बच्चों कौ उच्च शिक्षा के लिए एजुकेशन लोन लेने गले माता-पिता को मुद्रा के उतार-चढाव से अचानक आने वाले आर्थिक भार के लिए भी योजना बनाकर रखनी चाहिए।
Source : Dainik Bhaskar